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बनारस का घाट और पहली मुलाक़ात जिस पल मैं, मैं ना र

बनारस का घाट और पहली मुलाक़ात
जिस पल मैं, मैं ना रही हो चुकी थी तुम्हारी

अनुशीर्षक में पढ़े नहीं भुला पाई हूं
आज भी उस शाम को
जब तुम मिले थे मुझे
पहली दफा बस यूं ही
बनारस के घाट पर
वो शाम का वक्त 
बह रही थी हवा,
और थमी सी थी लहरें
बनारस का घाट और पहली मुलाक़ात
जिस पल मैं, मैं ना रही हो चुकी थी तुम्हारी

अनुशीर्षक में पढ़े नहीं भुला पाई हूं
आज भी उस शाम को
जब तुम मिले थे मुझे
पहली दफा बस यूं ही
बनारस के घाट पर
वो शाम का वक्त 
बह रही थी हवा,
और थमी सी थी लहरें