वो रात भर बैठता है चाँद के नीचे, अब्र नहीं टपकता न चाँद के नीचे। हर कोई मशरूफ यहाँ तारे तोड़ने में, वो भागता फिरे है जुगनुओं के पीछे। बाम-ए-मस्कन से टांक दे वो लफ्ज़, मंजि़लें बना डाली एक मंजि़ल के पीछे। है गर दरिया तो कोई गली भी होगी, क्यूँ ना आए माहताब नुक्खड़ के पीछे। ~आद्या श्रीवास्तवा। अब्र- Cloud बाम-ए-मस्कन- Terrace of a House