मुस्काये लाली होंठ पर, झन झनक दिलकश नक़्श हैं टक दर

मुस्काये लाली होंठ पर,
झन झनक दिलकश नक़्श हैं
टक दर्श जाज़िब-ए-नज़र,
रुप रंज़िशों के रक़्स हैं
न महज़ सताइश ज़िस्म की,
तेरे रूह की तौफ़ीक़ है
हृद चिर प्रकट क्षण गुप्त में,
तस्वीर बस नज़दीक है  "रूह को उपहार"

आपके बेशक़ीमती comments, सूरत और सीरत  से प्रेरित इस कविता को लिख कर मज़ा आ गया RUPAL जी।

और कुछ कहने को शब्द ही नहीं मिल रहे हैं।

🙏👸😁👸🙏
मुस्काये लाली होंठ पर,
झन झनक दिलकश नक़्श हैं
टक दर्श जाज़िब-ए-नज़र,
रुप रंज़िशों के रक़्स हैं
न महज़ सताइश ज़िस्म की,
तेरे रूह की तौफ़ीक़ है
हृद चिर प्रकट क्षण गुप्त में,
तस्वीर बस नज़दीक है  "रूह को उपहार"

आपके बेशक़ीमती comments, सूरत और सीरत  से प्रेरित इस कविता को लिख कर मज़ा आ गया RUPAL जी।

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