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प्रेम की आहुति (अंतिम भाग) विक्की की ओर से दोस्ती

प्रेम की आहुति
(अंतिम भाग)

विक्की की ओर से दोस्ती बढ़ने लगी और मेरी तरफ से प्यार। 

एक दिन जब मैंने अपने दिल की बात विक्की से कही तो विक्की ने समझाया और बोला कि- 'मैं तुम्हें नहीं अपना सकता। क्यूंकि हमारा रिश्ता हमारे घर वालों को मंजूर न होगा ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी जाति अलग है । मेरी मां और मामी बचपन की सहेली हैं। मुसीबतों में एक दूसरे का साथ देती हैं इसलिए इतना मिलजुलकर रहते हैं। अंतर्जातीय स्त्री बहन, भाभी,मामी, चाची, बुआ हो सकती है लेकिन यदि प्रेमिका या पत्नी बनीं तो रिश्ते भी खत्म और शायद... 
'शायद क्या विक्की?' घबराहट भरी आवाज में मैंने पूछा।

आंखों से आंसू छलकाते हुए विक्की ने कहा- शायद... उन प्रेमियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ जाए। तुम अखबार नहीं पढ़ती क्या?

इतना कहकर विक्की मुझसे दूर, बहुत दूर चला गया। क्यूंकि वह अच्छी तरह जानता है कि हमारा देश भारत, विविधता में एकता का प्रतीक है। लेकिन यह एकता समान शिक्षा, समान संगठन, दोस्ती,नातेदारी तक ही सीमित है। अंतर्जातीय प्रेम या विवाह तथा दूसरे धर्म के व्यक्ति से प्रेम या विवाह समाज द्वारा अस्वीकारीय है। 

अपने देश की मिट्टी पर प्रेम में होने वाले इस मिलावट को देखती हूं तो मुझे मेरा प्यार विक्की नज़र आता है, नज़र आते हैं कई युगल जोड़े जिन्हें 21वीं सदी में भी प्रेम के प्रतिफल स्वरूप मृत्यु दण्ड प्राप्त हुए। नज़र आती है वह समझदारी (मजबूरी) जो ऐसी कुरीति पर मौन साध लेती है और समाज के इस कथित सम्मान वाले यज्ञ कुण्ड में अपने प्रेम की आहुति दे देती है।

©Yaminee Suryaja प्रेम की आहुति
(कहानी का अंतिम भाग)
#NojotoStreak
प्रेम की आहुति
(अंतिम भाग)

विक्की की ओर से दोस्ती बढ़ने लगी और मेरी तरफ से प्यार। 

एक दिन जब मैंने अपने दिल की बात विक्की से कही तो विक्की ने समझाया और बोला कि- 'मैं तुम्हें नहीं अपना सकता। क्यूंकि हमारा रिश्ता हमारे घर वालों को मंजूर न होगा ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी जाति अलग है । मेरी मां और मामी बचपन की सहेली हैं। मुसीबतों में एक दूसरे का साथ देती हैं इसलिए इतना मिलजुलकर रहते हैं। अंतर्जातीय स्त्री बहन, भाभी,मामी, चाची, बुआ हो सकती है लेकिन यदि प्रेमिका या पत्नी बनीं तो रिश्ते भी खत्म और शायद... 
'शायद क्या विक्की?' घबराहट भरी आवाज में मैंने पूछा।

आंखों से आंसू छलकाते हुए विक्की ने कहा- शायद... उन प्रेमियों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ जाए। तुम अखबार नहीं पढ़ती क्या?

इतना कहकर विक्की मुझसे दूर, बहुत दूर चला गया। क्यूंकि वह अच्छी तरह जानता है कि हमारा देश भारत, विविधता में एकता का प्रतीक है। लेकिन यह एकता समान शिक्षा, समान संगठन, दोस्ती,नातेदारी तक ही सीमित है। अंतर्जातीय प्रेम या विवाह तथा दूसरे धर्म के व्यक्ति से प्रेम या विवाह समाज द्वारा अस्वीकारीय है। 

अपने देश की मिट्टी पर प्रेम में होने वाले इस मिलावट को देखती हूं तो मुझे मेरा प्यार विक्की नज़र आता है, नज़र आते हैं कई युगल जोड़े जिन्हें 21वीं सदी में भी प्रेम के प्रतिफल स्वरूप मृत्यु दण्ड प्राप्त हुए। नज़र आती है वह समझदारी (मजबूरी) जो ऐसी कुरीति पर मौन साध लेती है और समाज के इस कथित सम्मान वाले यज्ञ कुण्ड में अपने प्रेम की आहुति दे देती है।

©Yaminee Suryaja प्रेम की आहुति
(कहानी का अंतिम भाग)
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