पर्दा-ए-दिखावा सब के चेहरे पर, आब-ए तल्ख़ छुपाए है, आकि़ल समझ खुद को,यह मन में बिठाए है, खुद को अहंकार की अग्नि में जलाए है, आज़दारह है हर कोई आजकल, पर चेहरे पर नकाब खुश दिखने का लगाए है, कोई जुल्फों की साजिश से घायल, कोई आकि़बत से परेशान यहां आजमाइश के कटघरे में खड़ा,हर कोई इंसान मुफलिसी का मारा, चेहरा बेनकाब लिए फिरता हूं, मैं सिर्फ यह जानू ईमान लिए फिरता हूं। 🌝प्रतियोगिता-68 🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"एक नकाब यह भी"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I