'ये उम्र के तकाज़े' ठुकरा के छतरियों को, बारिश से आ रहे हैं ये कील ये मुँहासे, चालिस से आ रहे हैं। आज़ाद ख़याली का, अपना ही एक मज़ा है अल्हड़ थे जो ख्याल, बालिग़ से आ रहे हैं। जबरन थी जो लगायी, वो गांठ खुल रही है अरमान भूले- बिसरे, खालिस से आ रहे हैं। जो मर चुका हो कब का, पूछे सवाल कैसे? करके यही सवाल, कातिल से आ रहे हैं। देखें सुलूक कैसा, करती है अब जमातें? हम सीख करके कलमा, काफ़िर से आ रहे हैं। क्या उम्र और दिल के, रिश्ते हैं सौत जैसे? ये सवाल मेरे दिल में, वाजिब से आ रहे हैं। ये उम्र के तकाज़े, उस्ताद हैं बहुत जवाब हर सवाल में, ज़ाहिर से आ रहे हैं। यूँ तो मेरे जज़्बात, नाज़ुक हैं शुरु से पर क्या करूं के आज, शातिर से आ रहे हैं। शक़ मेरी नीयतों पे, करके भी क्या करोगे नीयत से ये परे हैं, नाज़िल से आ रहे हैं। पाबंदियां वो सारी, हैं कर रहीं बग़ावत तेरी पूछने सलामत, हम फिर से आ रहे हैं। #NaveenMahajan ये उम्र के तकाज़े #walkingalone