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धीरे धीरे ही सही..... धीरे धीरे ही सही सब समझने ल

धीरे धीरे ही सही.....

धीरे धीरे ही सही सब समझने लगा हूँ मैं, 
मुस्कुराहट मैं छिपी उसकी खामोशियों को अब अच्छे से पढ़ने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही.....

ना जाने वक़्त के किस प्रहर ने मिलाया मुझे उससे,
खुदा के इस खूबसूरत सितम को भी सहने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही.....

लफ्जों की जादूगर है वो, ऎसे बतियाती मानो.. 
बादलों के आगोश में भी चाँद अपनी चाँदनी बिखेर रहा हो |
चाँद की इस मदहोश चाँदनी को भी अनजानी आँखो से निहारने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही..... 

कभी आँखो से ओझल हो जाती वो मेरे, तो कभी मेरे सपनों में अपना आशियाना बनाती
अपने हुस्न के कहर से, बेज़ान इस दिल में उम्मीद की बरसात कर जाती |
उम्मीदों के इस पहाड़ पर बेफिक्र चढ़ने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही..... 

लौट कर आयेगी वो किसी दिन इस बेरंग महफिल को अपने रंगो से भरने |
उसके आने की आहट को अभी से महसूस करने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही सब समझने लगा हूँ मैं || Alfaz 1.1
धीरे धीरे ही सही.....

धीरे धीरे ही सही सब समझने लगा हूँ मैं, 
मुस्कुराहट मैं छिपी उसकी खामोशियों को अब अच्छे से पढ़ने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही.....

ना जाने वक़्त के किस प्रहर ने मिलाया मुझे उससे,
खुदा के इस खूबसूरत सितम को भी सहने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही.....

लफ्जों की जादूगर है वो, ऎसे बतियाती मानो.. 
बादलों के आगोश में भी चाँद अपनी चाँदनी बिखेर रहा हो |
चाँद की इस मदहोश चाँदनी को भी अनजानी आँखो से निहारने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही..... 

कभी आँखो से ओझल हो जाती वो मेरे, तो कभी मेरे सपनों में अपना आशियाना बनाती
अपने हुस्न के कहर से, बेज़ान इस दिल में उम्मीद की बरसात कर जाती |
उम्मीदों के इस पहाड़ पर बेफिक्र चढ़ने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही..... 

लौट कर आयेगी वो किसी दिन इस बेरंग महफिल को अपने रंगो से भरने |
उसके आने की आहट को अभी से महसूस करने लगा हूँ मैं |
धीरे धीरे ही सही सब समझने लगा हूँ मैं || Alfaz 1.1