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मैं जो लिखने‌ बैठी कि होती कैसी है ये बेटी कलम एहस

मैं जो लिखने‌ बैठी कि होती कैसी है ये बेटी
कलम एहसास ना लिख सकी
होती हैं बेटियां कितनी खास ये बात ना लिख सकी
क्या लिखूं कि वो तपती धुप में छांव है
या लिख दूं उसे कि वो महावर भरा पांव है
क्या लिखूं कि वो माहताब का उजाला है
या लिख दूं उसे कि वो गुस्से पे लगा ताला है
क्या लिखूं कि वो हर दर्द की दवाई है
या लिख दूं उसे कि वो मां की परछांई है
क्या लिखूं कि वो घरों की रौनक है
या लिख दूं उसे कि वही तो उम्र भर की दौलत है
क्या लिखूं आखिर क्या लिखूं

©Garima Srivastava
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