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रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !! तन-

रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
तन-धन  का अभिमान भी मिट्टी में मिल जाती है !!
धुप में तपता किसान रो पड़ता है 
अपनी सूखी खेतों को देखकर,
आसमानों में बादलों से चेहरे खिल जाती है !!
चाँद को देखता रहता हूँ रातों को आसमानों में,
तनहा  कम्बख्त नींद नहीं आती है!!
और यूं तो शब्दों से खेलना आदत है मेरी,
पर तेरे सामने खिलाड़ी खिलौना बन जाती है !!
घर की दीवारों से  भी चीख निकल पड़ती है,
जब माँ, किसी घर को बिन माँ छोड़ जाती है !!
रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
 रोंगटे खड़े हो जाती है,  मन में आग लग जाती है!!
विश्वास टूट जाती है, जब विश्वासघात हो जाती है!!
आँखें रोती है, शहर में मातम छा जाती है!!
जब वीर कुर्बान हो कर शहीद हो जाती है!!
जोश के बीज बो देते हैं फ़िजाऔ में
नईं नस्लों को वीरता की सीख सीखा जाती है!!
रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है!!
                     @beparwaofficial रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
तन-धन  का अभिमान भी मिट्टी में मिल जाती है !!
धुप में तपता किसान रो पड़ता है 
अपनी सूखी खेतों को देखकर,
आसमानों में बादलों से चेहरे खिल जाती है !!
चाँद को देखता रहता हूँ रातों को आसमानों में,
तनहा  कम्बख्त नींद नहीं आती है!!
और यूं तो शब्दों से खेलना आदत है मेरी,
रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
तन-धन  का अभिमान भी मिट्टी में मिल जाती है !!
धुप में तपता किसान रो पड़ता है 
अपनी सूखी खेतों को देखकर,
आसमानों में बादलों से चेहरे खिल जाती है !!
चाँद को देखता रहता हूँ रातों को आसमानों में,
तनहा  कम्बख्त नींद नहीं आती है!!
और यूं तो शब्दों से खेलना आदत है मेरी,
पर तेरे सामने खिलाड़ी खिलौना बन जाती है !!
घर की दीवारों से  भी चीख निकल पड़ती है,
जब माँ, किसी घर को बिन माँ छोड़ जाती है !!
रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
 रोंगटे खड़े हो जाती है,  मन में आग लग जाती है!!
विश्वास टूट जाती है, जब विश्वासघात हो जाती है!!
आँखें रोती है, शहर में मातम छा जाती है!!
जब वीर कुर्बान हो कर शहीद हो जाती है!!
जोश के बीज बो देते हैं फ़िजाऔ में
नईं नस्लों को वीरता की सीख सीखा जाती है!!
रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है!!
                     @beparwaofficial रूह जब निकलती है जिस्म से, साँस रुक जाती है !!
तन-धन  का अभिमान भी मिट्टी में मिल जाती है !!
धुप में तपता किसान रो पड़ता है 
अपनी सूखी खेतों को देखकर,
आसमानों में बादलों से चेहरे खिल जाती है !!
चाँद को देखता रहता हूँ रातों को आसमानों में,
तनहा  कम्बख्त नींद नहीं आती है!!
और यूं तो शब्दों से खेलना आदत है मेरी,
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