सावन बीते भादों आए, रह रह बरखा टीस उठाये, सखियों संग बैठी सजनी, कि अबकी सजना अबहूँ न आए। बियोग में सजनी बैठि पिया के, हर सांझ जिया बहलाये। काज अकाज को तज के पगली, प्रेम दीप हर रोज जलाये। मचले तन का रोम रोम, जब बूंद बदन पर गिरती जाए। करके याद मिलन की रतिया, वो मन ही मन मुसकाये, मन ही मन वो कहती जाए, कि अबकी सजना अबहूँ न आये।। अबकी सजना अबहूँ न आये।।