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मुझे हमेशा से बहुत दूर जाना है । जब भी मूड ख

      मुझे हमेशा से बहुत दूर जाना है । जब भी मूड खराब हो जाता है, और अपने ही लोगों के साथ रहना मुश्किल होने लगता है, तब मैं भाग जाना चाहती हूँ । ताकि उसके बाद लोगों को मेरी याद आए, वो मुझे मनाने आएं । मैं अच्छी हूँ, मैं ग़लत नहीं थी ये सब जाने । लेकिन मुझे कभी ये नहीं पता था, मुझे जाना कितनी दूर है । और कितनी दूर चले जाने के बाद किसीको ये पता चलेगा कि मैं सचमुच, दुःखी होकर कहीं चली गई । कितने दूर चले जाने के कोई मुझे ढूंढने आएगा ।
जब कोई मुझसे पूछा करता की तुम कहाँ जाना चाहती हो, उस वक़्त मेरे पास कोई सटीक जवाब नहीं होता है देने के लिए , बस एक बिंदू होती है और वो बिंदू पर मैं अकेली, खुला आकाश, हवाएं और कुछ भी नहीं होता । मैं इससे ज्यादा सोच ही नहीं पाती ।
ये किताब मेरी पहली ख़रीदी हुई किताब है, और वजह इसकी टाइटल है । ये बिल्कुल मेरे जैसा था । एक खाली जगह जहां मैं तब जाना चाहती थी जब दूर चली गई होती । इस किताब में कुछ ऐसे बात लिखे है जो आपके दूर और पास के कई पैमाने बदलकर रख देती है ।
ये एक यात्रा वृतांत है, किताब के खुलते ही दाहिनी ओर लिखा है । और जो भी जगह है वहां मैं कभी नहीं गई, ना इसमें लिखा कोई भी संयोग मेरे साथ हुआ, पर मैं काफ़ी दूर हो गई थी पढ़ने के दौरान । दूरी और पास का मोटा मोटी हिसाब लगाना अब आ गया था । किताब आपको ,आपके बनाये गये दृश्य और लेखक के हालात पर बहुत करीब रखना चाहेगी । और किताब के बंद होते ही आप अपने वर्तमान के नाटक से खुद को बहुत दूर पाएंगे । ये एक यात्रा है और इसकी रफ़्तार आप खुद तय कर सकते है ।
हालांकि लेखक ने भी एक रचनात्मक राह चुनी है, और पतंग भी ऊंची उड़ान भरते हुए आपको यक़ीन दिलाती है कि आकाश दूर है लेकिन बस धागे भर की दूरी है । बचपन की गलियों में जो पौधे उग आए है, उसके ही पास वाले शहर में हम वक़्त को ढलते देख रहें है ।
-ईशा मृदुल

- मानव कौल की किताब "बहुत दूर कितना दूर होता है" पर लिखी गई ईशा मृदुल की समीक्षा है वापसी का कोई दूसरा बेहतर रास्ता नहीं मिला 🙂
      मुझे हमेशा से बहुत दूर जाना है । जब भी मूड खराब हो जाता है, और अपने ही लोगों के साथ रहना मुश्किल होने लगता है, तब मैं भाग जाना चाहती हूँ । ताकि उसके बाद लोगों को मेरी याद आए, वो मुझे मनाने आएं । मैं अच्छी हूँ, मैं ग़लत नहीं थी ये सब जाने । लेकिन मुझे कभी ये नहीं पता था, मुझे जाना कितनी दूर है । और कितनी दूर चले जाने के बाद किसीको ये पता चलेगा कि मैं सचमुच, दुःखी होकर कहीं चली गई । कितने दूर चले जाने के कोई मुझे ढूंढने आएगा ।
जब कोई मुझसे पूछा करता की तुम कहाँ जाना चाहती हो, उस वक़्त मेरे पास कोई सटीक जवाब नहीं होता है देने के लिए , बस एक बिंदू होती है और वो बिंदू पर मैं अकेली, खुला आकाश, हवाएं और कुछ भी नहीं होता । मैं इससे ज्यादा सोच ही नहीं पाती ।
ये किताब मेरी पहली ख़रीदी हुई किताब है, और वजह इसकी टाइटल है । ये बिल्कुल मेरे जैसा था । एक खाली जगह जहां मैं तब जाना चाहती थी जब दूर चली गई होती । इस किताब में कुछ ऐसे बात लिखे है जो आपके दूर और पास के कई पैमाने बदलकर रख देती है ।
ये एक यात्रा वृतांत है, किताब के खुलते ही दाहिनी ओर लिखा है । और जो भी जगह है वहां मैं कभी नहीं गई, ना इसमें लिखा कोई भी संयोग मेरे साथ हुआ, पर मैं काफ़ी दूर हो गई थी पढ़ने के दौरान । दूरी और पास का मोटा मोटी हिसाब लगाना अब आ गया था । किताब आपको ,आपके बनाये गये दृश्य और लेखक के हालात पर बहुत करीब रखना चाहेगी । और किताब के बंद होते ही आप अपने वर्तमान के नाटक से खुद को बहुत दूर पाएंगे । ये एक यात्रा है और इसकी रफ़्तार आप खुद तय कर सकते है ।
हालांकि लेखक ने भी एक रचनात्मक राह चुनी है, और पतंग भी ऊंची उड़ान भरते हुए आपको यक़ीन दिलाती है कि आकाश दूर है लेकिन बस धागे भर की दूरी है । बचपन की गलियों में जो पौधे उग आए है, उसके ही पास वाले शहर में हम वक़्त को ढलते देख रहें है ।
-ईशा मृदुल

- मानव कौल की किताब "बहुत दूर कितना दूर होता है" पर लिखी गई ईशा मृदुल की समीक्षा है वापसी का कोई दूसरा बेहतर रास्ता नहीं मिला 🙂

मुझे हमेशा से बहुत दूर जाना है । जब भी मूड खराब हो जाता है, और अपने ही लोगों के साथ रहना मुश्किल होने लगता है, तब मैं भाग जाना चाहती हूँ । ताकि उसके बाद लोगों को मेरी याद आए, वो मुझे मनाने आएं । मैं अच्छी हूँ, मैं ग़लत नहीं थी ये सब जाने । लेकिन मुझे कभी ये नहीं पता था, मुझे जाना कितनी दूर है । और कितनी दूर चले जाने के बाद किसीको ये पता चलेगा कि मैं सचमुच, दुःखी होकर कहीं चली गई । कितने दूर चले जाने के कोई मुझे ढूंढने आएगा । जब कोई मुझसे पूछा करता की तुम कहाँ जाना चाहती हो, उस वक़्त मेरे पास कोई सटीक जवाब नहीं होता है देने के लिए , बस एक बिंदू होती है और वो बिंदू पर मैं अकेली, खुला आकाश, हवाएं और कुछ भी नहीं होता । मैं इससे ज्यादा सोच ही नहीं पाती । ये किताब मेरी पहली ख़रीदी हुई किताब है, और वजह इसकी टाइटल है । ये बिल्कुल मेरे जैसा था । एक खाली जगह जहां मैं तब जाना चाहती थी जब दूर चली गई होती । इस किताब में कुछ ऐसे बात लिखे है जो आपके दूर और पास के कई पैमाने बदलकर रख देती है । ये एक यात्रा वृतांत है, किताब के खुलते ही दाहिनी ओर लिखा है । और जो भी जगह है वहां मैं कभी नहीं गई, ना इसमें लिखा कोई भी संयोग मेरे साथ हुआ, पर मैं काफ़ी दूर हो गई थी पढ़ने के दौरान । दूरी और पास का मोटा मोटी हिसाब लगाना अब आ गया था । किताब आपको ,आपके बनाये गये दृश्य और लेखक के हालात पर बहुत करीब रखना चाहेगी । और किताब के बंद होते ही आप अपने वर्तमान के नाटक से खुद को बहुत दूर पाएंगे । ये एक यात्रा है और इसकी रफ़्तार आप खुद तय कर सकते है । हालांकि लेखक ने भी एक रचनात्मक राह चुनी है, और पतंग भी ऊंची उड़ान भरते हुए आपको यक़ीन दिलाती है कि आकाश दूर है लेकिन बस धागे भर की दूरी है । बचपन की गलियों में जो पौधे उग आए है, उसके ही पास वाले शहर में हम वक़्त को ढलते देख रहें है । -ईशा मृदुल - मानव कौल की किताब "बहुत दूर कितना दूर होता है" पर लिखी गई ईशा मृदुल की समीक्षा है वापसी का कोई दूसरा बेहतर रास्ता नहीं मिला 🙂