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ये ढलती हुई शाम । दे जाती जाने कितने पैगाम । जिन्द

ये ढलती हुई शाम ।
दे जाती जाने कितने पैगाम ।
जिन्दगी को गहराई से समझने का,
बड़ी ही खामोशी से करती है काम ।
बुनती नई उम्मीदों का ताना-बाना।
अक्सर ढूंढ लेती है जीने का बहाना।
दरनिकार कर गमों को ,
आस दे जाती है गुनगुनाने का नया तराना।

रश्मि वत्स..।

©Rashmi Vats #ढलतीहुईशाम#पैगाम#जिन्दगी#खामोशी#उम्मीद#तराना

#Goodevening
ये ढलती हुई शाम ।
दे जाती जाने कितने पैगाम ।
जिन्दगी को गहराई से समझने का,
बड़ी ही खामोशी से करती है काम ।
बुनती नई उम्मीदों का ताना-बाना।
अक्सर ढूंढ लेती है जीने का बहाना।
दरनिकार कर गमों को ,
आस दे जाती है गुनगुनाने का नया तराना।

रश्मि वत्स..।

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