एक शाम ढलती, करती उम्मीद नये कल की... मन मे है मचलती, आश उगते नये सूरज सी... अंधेरे में रास्ता करती, वह छोटीसी राह कीसी पथ की... छूनी हैं उसे उचाई, मन ही मन निश्र्चय करती... होगी हर दूर कठिनाई, चाहे कितनी भी गहरी हो खाईं... वो मंजिलके लिए मचलती, मन से प्रबल हैं बनती... जरूर लक्ष्य पार करेगी, डटकर वो लडेंगी.. और दुनिया धर्मि को देखेगी.. फिर लक्ष्य को 'प्रीती' से निहारती...। -वाघेला ©khankhan...... (खनखन...👧) #dharmi Dharmi Baraiya