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ग़ज़ल अगर यहीं के हो ,तो इतना "डर" कैसे, मगर चोरी

ग़ज़ल
अगर यहीं के हो ,तो इतना "डर" कैसे,
मगर चोरी से घुसे हो तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??

अगर तुम "अमनपसंद" हो तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,वो तुम्हारा "शहर" कैसे??

कल तक सिर्फ कोहरा था,मेरे शहर की फ़िज़ा में,
आज़ नफरत का धुआं है तो सुहानी "सहर" कैसे?

इज़हार ए नाराज़ी करो आईन(constitution)की ज़द में,
मगर गली कूंचों में, इतनी "मज़हबी लहर" कैसे?

सिर्फ लहज़ा सख्त होता, तो हम चुप भी रह लेते,
मगर तुम्हारे लफ़्ज़ों और नारों में, "जिहादी ज़हर" कैसे?

सियासत से ख़िलाफ़त करो, हमे कोई गिला नही है,
रियासत (Nation)से दग़ा होगी, तो हम करें "सबर" कैसे?

अगर यहीँ के हो तो इतना "डर" कैसे?
मगर चोरी से घुसे हो, तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??
🇮🇳🇮🇳🇮🇳

:- अज्ञात यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार।

यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठाराघात करती है जो इस देश को टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है या उसका समर्थन करता है।

कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसे भी देखे गए है जिन्हे नागरिकता संशोधन कानून के बारे में कुछ भी नहीं पता है बस विरोध इसलिए कर रहे है क्युकी फलाना लोग विरोध कर रहे है। उनसे अनुरोध है कि पहले कानून को पढ़े समझे फिर अगर कुछ ग़लत लगे तो बात करे विरोध करे पर तरीके से।

आपका इतना हिंसक
ग़ज़ल
अगर यहीं के हो ,तो इतना "डर" कैसे,
मगर चोरी से घुसे हो तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??

अगर तुम "अमनपसंद" हो तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,वो तुम्हारा "शहर" कैसे??

कल तक सिर्फ कोहरा था,मेरे शहर की फ़िज़ा में,
आज़ नफरत का धुआं है तो सुहानी "सहर" कैसे?

इज़हार ए नाराज़ी करो आईन(constitution)की ज़द में,
मगर गली कूंचों में, इतनी "मज़हबी लहर" कैसे?

सिर्फ लहज़ा सख्त होता, तो हम चुप भी रह लेते,
मगर तुम्हारे लफ़्ज़ों और नारों में, "जिहादी ज़हर" कैसे?

सियासत से ख़िलाफ़त करो, हमे कोई गिला नही है,
रियासत (Nation)से दग़ा होगी, तो हम करें "सबर" कैसे?

अगर यहीँ के हो तो इतना "डर" कैसे?
मगर चोरी से घुसे हो, तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??
🇮🇳🇮🇳🇮🇳

:- अज्ञात यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार।

यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठाराघात करती है जो इस देश को टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है या उसका समर्थन करता है।

कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसे भी देखे गए है जिन्हे नागरिकता संशोधन कानून के बारे में कुछ भी नहीं पता है बस विरोध इसलिए कर रहे है क्युकी फलाना लोग विरोध कर रहे है। उनसे अनुरोध है कि पहले कानून को पढ़े समझे फिर अगर कुछ ग़लत लगे तो बात करे विरोध करे पर तरीके से।

आपका इतना हिंसक

यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार। यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठाराघात करती है जो इस देश को टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है या उसका समर्थन करता है। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसे भी देखे गए है जिन्हे नागरिकता संशोधन कानून के बारे में कुछ भी नहीं पता है बस विरोध इसलिए कर रहे है क्युकी फलाना लोग विरोध कर रहे है। उनसे अनुरोध है कि पहले कानून को पढ़े समझे फिर अगर कुछ ग़लत लगे तो बात करे विरोध करे पर तरीके से। आपका इतना हिंसक