यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार।
यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठाराघात करती है जो इस देश को टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है या उसका समर्थन करता है।
कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी ऐसे भी देखे गए है जिन्हे नागरिकता संशोधन कानून के बारे में कुछ भी नहीं पता है बस विरोध इसलिए कर रहे है क्युकी फलाना लोग विरोध कर रहे है। उनसे अनुरोध है कि पहले कानून को पढ़े समझे फिर अगर कुछ ग़लत लगे तो बात करे विरोध करे पर तरीके से।
आपका इतना हिंसक