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एक पत्र माँ के लिये मां तेरा आंचल पकड़ कर फिर से

एक पत्र माँ के लिये

मां तेरा आंचल पकड़ कर फिर से झुलना चाहती हूं
 बहुत पा लिया मिथ्या प्यार शानो शौकत मां
 तेरे गुस्से के पीछे छुपा वाला प्यार फिर चाहती हूं 
दिन भर के काम-काज से थक के चूर हूं मां
तेरी गोद में सर रख स्नेहछुअन से सोना चाहती हूं 
तानो की जो भर चुकी है गठरी भारी मां 
आकर तेरे पास तेरे सामने उसे खोलना चाहती हूं
 चुप चुप के घुटन जो भरी पड़ी है मन में मां 
राजोगम तुम्हारे सामने सारे बोलना  चाहती हूं 
खुद के हाथ के खाने से भरता है पेट मगर मां 
तेरे हाथ का खाना खा कर मन की तृप्ति चाहती हूं
दुनिया भर के शोर शराबे से खो गया है चेन मां
तेरी पनाहा में आ कर फिर पुन: सुकून चाहती हूं

©arti Saxena
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