धूप
तेज़ धूप से तो दरख्तों के पत्ते भी जल जाते,
तेरी मुहब्बत की आंच से फिर हम कैसे बच पाते.
तेरी बाहों के दरमियां मेरे ज़ज़्बात जो पिघल जाते,
उन लम्हों की यादों की कैद से फिर हम कैसे बच पाते.
सूरज के आते ही ज़माने के सारे रंग बदल जाते,
तुम्हारे आने की आहट से बदले रंग कैसे छुपा पाते
#Poetry