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अजीब है ये ज़िन्दगी कभी धूप कभी छाव है ये ज़िन्दग

अजीब है ये ज़िन्दगी 
कभी धूप कभी छाव है ये ज़िन्दगी 
कभी मुस्कुराती है कभी रुलाती है
कभी मनमौजी बन असमंजस में डाल जाती है ये ज़िन्दगी
कैसी है ये ज़िन्दगी
कोई आय नज़दीक तो उसे दूर ले जाती है
किसी को न चाहो तब भी और करीब ले आती है ये ज़िन्दगी
कभी लगता है आ गई समझ 
कभी अनसुलझी पहेली सी नज़र आती है ये ज़िन्दगी
कैसी है ये ज़िन्दगी?

©Dr  Supreet Singh
  #कैसी_है_ये_ज़िन्दगी?