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जिसको दिन की चाहत हो, पर रात मिल जाए जिसको सुबह की

जिसको दिन की चाहत हो, पर रात मिल जाए
जिसको सुबह की चाहत हो, पर शाम मिल जाए
जिसको उजाले की चाहत हो, पर अंधेरा मिल जाए
जिसको अपनों की चाहत हो, पर पराया मिल जाए
जिसको खुशी की चाहत हो, पर गम मिल जाए
जिसको हीरे की चाहत हो, पर कांच का पत्थर मिल जाए
जिसको खाने की चाहत हो, पर पानी मिल जाए
जिसको आकाश की चाहत हो, पर धरती मिल जाए
जिसको देवता समान इंसान की चाहत हो, और कोई लुच्चा मिल जाए, तब जिंदगी, जिंदगी नहीं रहती।
तब जिंदगी तबाह हो जाती है, तबाह हो जाती है।।

©Icharaj kanwar Alone in life

Alone in life

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