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मिटा न पाई मैं ये आलम- ए-तन्हाई, और न कभी भेद ये ज

मिटा न पाई मैं ये आलम- ए-तन्हाई, और न कभी भेद ये जान पाई ।
माना बहुत थे गिले सिकवे आपको हमसे, पर मेरी लाख कोशिश उन्हे मिटा ना पाई।
हसरते शायद सिर्फ हमारी रही, मिलने की चाहत उन्हे न रही।
मुकम्मल मेरा ये इश्क ना हो पाया,और भेद तेरे दिल का ये कोई जान ना पाया।

©Diksha Chaudhary
  #AllGood😊

AllGood😊 #Shayari

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