अंधकार से भरी डगर। दूर बड़ा प्रेमनगर। बावरा है मन। हार माने ना।। जहरीला मरुस्थल है। काला एक जंगल है। पार उसके प्रीतम है कदम रुके ना।। एक जादू की नदी है। रेत के नीचे बहती है। तब तक नहाना है। पास उसके पहुंचे ना। रात जुगनूओं से भरी। उनके बीच वो परी। अवसर सिर्फ एक है। जुबां जमे ना।। तुम्हारी ही राह देखती थी। मैं सदियों से अकेली थी। सब कुछ तो है यहां। तेरे सिवा पियां।। हर क्षण प्रेम से लथपथ हो। ये पौधा विशाल वृक्ष हो। सदियों तक तेरा मोहपाश, पियां अब छूटे ना।। "प्रदीप" 16.01.2022 ©प्रदीप #Stars