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मेरी लड़ाई मुझसे थी, पर दूसरों से लड़ता रहा। मन में

मेरी लड़ाई मुझसे थी,
 पर दूसरों से लड़ता रहा।
मन में लिखा पढ़ ना पाया
पोथीयाँ जाने क्यों पढ़ता गया।

गर्मी, जाड़ा ,बरसात कोई भी मौसम
न भाया इस भर्मित मन को।
माया का खेल लुभाता रहा सदा
जाने क्या न किया अर्पित तन को।

मन ने रचा ये सारा झूठा संसार
लिपटाकर देह को भोग मे
फंसा  दिया इस जीवन जाल में
कट रहा हैं जीवन बस रोग में.

©Kamlesh Kandpal
  #mayaaurmn