जश्न जिंदगी से रिश्ता ऐसे निभाया है।।। मैने बर्बादियों पर जश्न मनाया है।। और भला क्या करती इज़हार-ऎ-मोहब्बत अपनी शायरी का तुझे मफ़हूम बनाया है।। मेरी ग़ज़ल पढ़ कर व रो पडा हसरत... जिसने हर मोड़ पे मुझे आज़्माया है अंधेरा न रहे उनकी महफ़िल में कहीं अपने लहू से मैंने चिराग जलाया है।।। मेह्फ़ूज़ रहे तू ज़माने की नज़र से दिल में मैने तुम्हारा एक आशियाँ बनाया है Zindgi Se Rishta Aise Bhi Nibhaya Hai... Maine Barbadiyo Par Jashn Manaya Hai.. Ab Or Bhala Kya Karti Izhaar-E-Mohabbat Har Shayri Ka Tujhe Mafhoom Banaya Hai.. Meri Gazal Padh Kar Wo Ro Pade... Is Baat Ne Dil Ko Araam Pohchaya Hai...