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उस तक पहुंचा मैं उसकी तस्वीर से, जैसे कलम गज़ल स

उस तक  पहुंचा  मैं  उसकी तस्वीर से,
जैसे कलम गज़ल से मिली तक़दीर से.

हुस्न-ए-दावत  हुई जब, तो कमबख्त,
मनमोहक ख़ुशबू बाटती रही शरीर से.

तेरी  मंहगाई  का  कोई जवाब नहीं है,
क्यूँ कभी मिलती  नहीं इस फ़कीर से?

तुझे ख़रीदने  का सोचा  है अब,  चाहे,
चुरानी पड़े दौलत  बाप की जागिर से.

अब मोहब्बत से जंग करो तुम 'अभय'
झिंझोड़ों, लड़ो क़िस्मत की लक़ीर से. अब मोहब्बत से जंग करो तुम 'अभय'
उस तक  पहुंचा  मैं  उसकी तस्वीर से,
जैसे कलम गज़ल से मिली तक़दीर से.

हुस्न-ए-दावत  हुई जब, तो कमबख्त,
मनमोहक ख़ुशबू बाटती रही शरीर से.

तेरी  मंहगाई  का  कोई जवाब नहीं है,
क्यूँ कभी मिलती  नहीं इस फ़कीर से?

तुझे ख़रीदने  का सोचा  है अब,  चाहे,
चुरानी पड़े दौलत  बाप की जागिर से.

अब मोहब्बत से जंग करो तुम 'अभय'
झिंझोड़ों, लड़ो क़िस्मत की लक़ीर से. अब मोहब्बत से जंग करो तुम 'अभय'
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writer abhay

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