सर्द होती ये रातें कोई ओडे़ कंबल कोई आग है तापे जाड़े से बचने हेतू ओड के लिहाफ रुम हिटर है चलाए जो थोड़ा संपन्न है वह शरीर को गर्म रखने ख़ातिर मेवा है खाए ये सब तो सही है साहब लेकिन सोचो थोड़ा उनके बारे भी जनाब जो गरीब बेसहारा और अनाथ है कैसे वो कड़ाके की सर्द रात बिताए सर पर छप्पर नही हाथ मे बिस्तर नही गहराती सर्द रात से सड़क पर खुद को बचाए मजबूर और गरीब है कहीं तड़प कर मर न जाए इंसानियत के नाते ही सही थोड़ा सा तो रहम दिखाएं ज्यादा कुछ नही पुराने ही सही गर्म लत्ते और कंबल जो पड़े हो फालतू वो ही इन जरूरतमंद को दे आएं ढूंढते फिरते हो खुदा को दर दर कितना पैसा है लुटाते किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे मे उनके दर्शन है तुम पाते फिर भी मन की शांति के लिए व्यर्थ ही दान कर आते जनाब इन गरीबों के दिल मे भी तो ईश्वर है समाते यही समझ कर फिर क्यों इनकी मदद को हाथ नही बढ़ाते हर बरस न जाने कितने लोग ठंड के चलते है जान से जाते इन लावारिसों की लाश देख क्यों नही ये दिल पसीज जाते शायद ये छोटी सी कोशिश किसी का जीवन बचा दे........... #निखिल_कुमार_अंजान..... #मेरी_डायरी..... #निखिल_कुमार_अंजान..... #nojoto.....