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कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन) रचना क्रमांक -

कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन)
रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 
विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

चेहरे में मासूमियत और ये शोख़ अदाएं।
नज़रों से क़ातिल पर दिल को लुभाए।
आख़िर उससे नज़रें चुराना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

बातों में शरारत जैसे हो लड़कपन।
हरकतें हैं ऐसी प्यारी, जीत लें सबका मन।
आख़िर उससे बचकर जाना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

सबके दिलों की वो मल्लिका, रातों की रानी।
ख़ूबसूरत है वो इतनी, जैसे अल्हड़ जवानी।
आख़िर उससे आज दूर जाना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
दिल में इस क़दर बस गई है वो सनम मेरी।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन)
रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 
विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।
कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन)
रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 
विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

चेहरे में मासूमियत और ये शोख़ अदाएं।
नज़रों से क़ातिल पर दिल को लुभाए।
आख़िर उससे नज़रें चुराना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

बातों में शरारत जैसे हो लड़कपन।
हरकतें हैं ऐसी प्यारी, जीत लें सबका मन।
आख़िर उससे बचकर जाना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

सबके दिलों की वो मल्लिका, रातों की रानी।
ख़ूबसूरत है वो इतनी, जैसे अल्हड़ जवानी।
आख़िर उससे आज दूर जाना कौन चाहता है।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
दिल में इस क़दर बस गई है वो सनम मेरी।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन-3 (ग़ज़ल लेखन)
रचना क्रमांक - 4 दिनाँक - 16.01.2022 
विषय :- मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।

मयखाने की तरफ़ जाना कौन चाहता है।
रोज वही बात दोहराना कौन चाहता है।
हम तो रहते हैं उसके ही गम में गुमशुदा।
भूलकर भी उसको भुलाना कौन चाहता है।