* इक हकीक़त * ना आदत है तुझे याद करने की , ना चाहत है अब तुझे भुलाने की. खो गया हूँ मैं खुद ही कहीं अब ; हसरतें रखु क्या मैं कुछ और पाने की!! मंजिल करीब थी , रास्ते बेवफ़ा निकले, जो जितने करीब थे, उतने खफ़ा निकले ; हदे पार कर दी है अब रूठने मनाने की, बस इक ज़िद है दुनियाँ से दूर जाने की! मैं भी संग काफ़िले के खेला हुआ हूँ, बस इक शख्स के लिए अकेला हुआ हूँ! ज़िन्दगी ने तोड़ा है हर इक रिश्ता मुझसे; इक रज़ा है बस रिश्ता मौत से निभाने की!! DR mehta #waiting यज्ञेश्वर वत्स ऊषा माथुर