फासलों से बने फैसले आज भी सताती हैं ना फिर से आज शाम, भी ढलती सूरज का पता नहीं लगा पाए ना आज फिर से दूरियों के दर्मेया, फिर थामने चले हो ना वो बीते पल अब रेत है,उनमे तुझे फिर किस शहर की तलाश है अगर निकले हो तो लौटना नहीं, मुड़ना नहीं नहीं मिले वो तो ना सही, इस बार अपना वजूद ढूंढ लाना #Protégé