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भीगते हैं पन्ने ज़िन्दगी के, क़लम उकेरती जब जज़्बात.

 भीगते हैं पन्ने ज़िन्दगी के,
क़लम उकेरती जब जज़्बात..!
न जाने कब होगी वो,
ठहरी हुई मुलाक़ात..!

तुम बिन कहाँ चैन,
बीते जीवन जैसे रैन..!
गरजते हैं ज़माने वाले,
बरसती आँखें अकस्मात्..!

उजाले की उत्सुकता में,
मन पे हुए आघात..!
कसमें वादे क्या करें इरादे,
अच्छे नहीं है यूँ हालात..!

कुटिल कलेजा रख कर,
हुए यूँ ही कुख़्यात..!
सुख का सजा न सवेरा कभी,
ग़म की बिन माँगे मिली ख़ैरात..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #SunSet #thahrihuyimulaqat