मोहब्बत के कत्ल में कातिल की याद आती है मंझधार में अटके को भी साहिल की याद आती है जैसे मंझधार में फंसे हुए प्राणी को साहिल तक ले जाने वाली एक बेहद पतली डोर भी नई ऊर्जा और उम्मीद का एहसाह कराती है औऱ वह हौंसला और दृढ़ इच्छाशक्ति से उस मामूली सी डोर के सहारे ही उन सारी लहरों और बाधाओं को पार उस स्थिर किनारे को पाने की कोशिश में लग जाता है। ठीक वैसे ही इश्क़ में भी आशिक़ को अपनी माशूका का दीदार मात्र ही उसके जीने का सहारा बन जाता है, उसकी कल्पनाओ में उत्प्रेरक का काम करता है, उसके आसपास एक तिलिस्म का निर्माण कर देता है जो शायद क्षणिक होता है लेकिन बेचैनी को जन्म देता है। यदि इश्क़ दिल की उस तह से जन्मा है जहाँ छल कपट और वासना का कोई महत्व न रहता हो, जहाँ आत्मीय मिलन ही सब कुछ है तो उसकी मुक्ति का रास्ता साफ है। वह सच्चे प्रेम के उस आयाम को हासिल करेगा जहाँ तक अभी तक कुछ चुनिंदा लोग ही पहुँच पाए हैं। ~ गणेश पाण्डेय #love #collab Digital #diary Day #yqbaba