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दीन-दयालु देवा। कर मुनि,मनुज,सुरासुर सेवा ॥ १ ॥ 

दीन-दयालु देवा।
कर मुनि,मनुज,सुरासुर सेवा ॥ १ ॥ 

हिम-तम-करि केहरि करमाली। 
दहन दोष-दुख-दुरित-रुजाली ॥ २ ॥ 

कोक-कोकनद-लोक-प्रकासी। 
तेज-प्रताप-रूप-रस-रासी ॥ ३ ॥ 

सारथि-पंगु,दिब्य रथ-गामी। 
हरि-संकर-बिधि-मूरति स्वामी ॥ ४ ॥ 

बेद पुरान प्रगट जस जागै। 
तुलसी राम-भगति बर माँगै ॥ ५ ॥ 

यह स्तुति के रचयता श्री गोस्वामी तुलसीदासजी है।
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©Manwendra Tiwari
  ॐ आदित्याय नमः🌺🌺
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ॐ आदित्याय नमः🌺🌺 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 #कविता

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