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गजल ए इश्क क्या गुनगुनायें हम, तुम तो बस जुल्फों क

गजल ए इश्क क्या गुनगुनायें हम, तुम तो बस जुल्फों को उंगलियों में लपेट लेने दो
शाम ए वफा तो आने दो हम तुम्हे बाहों में समेट लेंगे
कुछ न कहो बस चुप ही रहो हमें जीभर कर फिर से तुम्हे देख लेने दो
मुसलसल सिलसिले को मुख्तसर न करो ये जवानी की शराब हमें पी लेने दो
होठों को तकलीफ न दो हमें नजरों से ही सबकुछ कह लेने दो
दबे पांव आकर चुपके से कानों में कुछ कह लेने दो
बिना छुए ही आज जज्बातों में बह लेने दो

शायर आयुष कुमार गौतम गजल ए इश्क
गजल ए इश्क क्या गुनगुनायें हम, तुम तो बस जुल्फों को उंगलियों में लपेट लेने दो
शाम ए वफा तो आने दो हम तुम्हे बाहों में समेट लेंगे
कुछ न कहो बस चुप ही रहो हमें जीभर कर फिर से तुम्हे देख लेने दो
मुसलसल सिलसिले को मुख्तसर न करो ये जवानी की शराब हमें पी लेने दो
होठों को तकलीफ न दो हमें नजरों से ही सबकुछ कह लेने दो
दबे पांव आकर चुपके से कानों में कुछ कह लेने दो
बिना छुए ही आज जज्बातों में बह लेने दो

शायर आयुष कुमार गौतम गजल ए इश्क

गजल ए इश्क