भोले तू भंडारी नही ये लोग भंडारी है तू पहाड पर बैठा भांग तेरे नाम से सडको पर बटती है क्या अजब गजब का इनका बेहश है आखे खुलती नही फिर भी हाथ मे भांग का गिलास है घर के पानी की होश नही वहा से भर के लाते है अरे जब तू वहा बैठे है फिर ये किस पर जल चडाते है एक नही ये तो लाखो की तादद मे है कैसे भारत तरकी करे जब बच्चे भी इसमे पढे है समझदार बनो