पढ़ा जा सके तुम्हे हर जगह, ऐसी खुली किताब बनो.... जीता जा सके तुम्हे हर जगह, ऐसी पुरी खिताब बनो.... मन मे कोई खलीश ना हो, कभी कोई जीत की.... जो समझे खुद को सिकन्दर, उसे हर जगह ललकारने वाला एकमात्र पुरूवास बनो.... अलग-अलग किरदार निभाते, अपने मे ही मर जाओगे.... आएगी आँसुओ की लहर जो कभी, बीच भंवर मे खुद ही खुद से डर जाओगे.... इसलिए उफनती लहरो को देख, नौका को खेने वाले इक पतवार बनो.... हर मझदार हो जाए फिकी, तुम खुद के खाते मे इक मझदार बनो.... तुम्हारा सनी हो हर कलाकारी, ऐसा खुद में कलाकार बनो.... देश पे संकट देखा लिया है अगर तुमने, तो भगत सिंह और आजाद बनो.... अगर आजाद हो गए हो खुद से तुम, तो खुद में स्वाधीन और संविधान बनो.... इंसानियत के कर्म को करो अपने नाम, और इंसानियत को पुजने वाले इक सर्वोत्तम इंसान बनो....!! -Sp"रूपचन्द्र" #मेरे_दोस्तों