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मेरा चेहरा है ऐसा, जैसे खेल खेलता है, कोई ना जाने,

मेरा चेहरा है ऐसा, जैसे खेल खेलता है,
कोई ना जाने, ये क्या क्या झेलता है,
बेवजह की बात पे, हस्ता रहता है ये,
पर तकलीफे अपनी, ये ना कहता है,

जो भी मिलता कहता, मैने काफी कुछ पाया है,
कोई ना समझता, क्या मैंने गवाया है,
जलाए है दिए मैने, रोशनी में बैठ के,
फिर भी खुद को मैने बस, अंधेरे में ही पाया है,

जैसा था मै पहले, अभी भी पहले जैसा हूं,
दुनिया चाहे जैसा मुझको, बन मै जाता वैसा हूं,
किस्मत का खेल जाने, ये कहां ले आया है,
दुनिया से मै रूठा, मुझसे रूठा मेरा साया है,

दुनिया को हंसाने वाला, पंखा देखता है बस,
उड़ना चाहता है पर, रस्सी भी ना लाया है,
जलाए है दिए मैने, रोशनी में बैठ के,
फिर भी खुद को मैने बस, अंधेरे में ही पाया है।

©Ashutosh Kumar
  Chehra mera khel khelta hai...

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