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ऐ जिंदगी हरदम देती रहती हो दर्द तुम , कभी हमदर्द

ऐ जिंदगी हरदम देती रहती हो दर्द तुम , 
कभी हमदर्द बनके मिलो ना ।
सिसकियाँ हैं...
कभी तुम मुस्कुराहट बनो ना ।
सिमटे हुए से हैं ख्वाब, 
तुम इसे बड़ा आकार दो ना ।
जिंदगी हरदम देती रहती हो दर्द तुम, 
कभी हमदर्द बनके मिलो ना ।

अगर कभी हुई न रुबरु तुम मेरे, 
हमारा तकरार होगा, 
तुम हसँना मुझपे, 
मुझे मेरा अश्रु स्वीकार होगा ।
मै पूछूँगी तुमसे... 
जो नादानी में तुम जिम्मेदारी पकड़ा देती हो, 
बेवक्त जो समझदार बना देती हो, 
एक बार फिर से नादान बना दो ना ।
हाथों मे फिर से वही बच्चपन वाला खिलौना पकड़ा दो ना ।

हर चेहरे पे लगा मुखौटा है, 
तुम मुझे सही और गलत में फ़र्क समझा दो ना ।
दुनियादारी मे आदमी कहाँ दिल खोल के हँस पाता है? 
रोना चाहो भी तो आँसू कहाँ आता है? 
ऐ जिंदगी बहुत तेज है रफ़्तार तुम्हारी...
थोड़ा सा आहिस्ता चलो ना। 

सम्भल जाऊँ  मै, 
थोड़ी -सी मोहल्लत दे दो ना । 

ऐ जिंदगी हरदम देती रहती हो दर्द तुम, 
कभी हमदर्द बनके मिलो ना।

©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla 
  ऐ जिंदगी कभी हमदर्द बनके मिलो ना...

ऐ जिंदगी कभी हमदर्द बनके मिलो ना... #कविता

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