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अब दालानों में धूप नही खेलती, अब छतों पे चिड़िया नह

अब दालानों में धूप नही खेलती,
अब छतों पे चिड़िया नही बैठती।
बन्द है कुछ यूं खिड़किया,
की दीवारों को सांस नही मिलती।

किवाड़ों पे जड़ गए है ताले,
और चिलमनो में धूल जम गई है।
कुछ यूं वक़्त ने करिश्मा किया,
की हवेली की सूरत नही खिलती।

अब पुराने चाहर दीवारी पे,
बचपन की अटखेलिया नही खेलती
आईना खामोश है,
आंगन में चौपालें नही सजती।

अब पुराने घर को ,
कोई याद नही करता।
किसीको अपने काम से,
अब फुरसत ही नही मिलती। घर
अब दालानों में धूप नही खेलती,
अब छतों पे चिड़िया नही बैठती।
बन्द है कुछ यूं खिड़किया,
की दीवारों को सांस नही मिलती।

किवाड़ों पे जड़ गए है ताले,
और चिलमनो में धूल जम गई है।
कुछ यूं वक़्त ने करिश्मा किया,
की हवेली की सूरत नही खिलती।

अब पुराने चाहर दीवारी पे,
बचपन की अटखेलिया नही खेलती
आईना खामोश है,
आंगन में चौपालें नही सजती।

अब पुराने घर को ,
कोई याद नही करता।
किसीको अपने काम से,
अब फुरसत ही नही मिलती। घर