अब मुश्किलों की सेज पर आँख खोलता हूँ मैं. दर्द केे डगर पे भी आँसूओं पे तैरता मैं पीड़ाओं से घिर केे भी चेहरों का मुस्कान हूँ मैं नफरतों की कश्ती है समंदर जल कर रोई है दो बूंद प्यार भी महंगी दूर गगन पे है. मुसाफ़िरों की भीड़ में अकेले राह पकड़ ली है, मंज़िल की तलाश में पाँव ज़मीन पे रख ली है पाँव ज़मीन पे रख ली है.. अब काँटो भरे राह पर खुशी से दौड़ता हूँ मैं, दर्द केे डगर पे भी अब आँसूओं पे हूँ तैरता मैं अब पीड़ाओं से घिर केे भी चेहरों का मुस्कान हूँ मैं चेहरों का मुस्कान हूँ मैं अब मुश्किलों की सेज पर आँख खोलता हूँ मैं.... King🖋🖋 self motivation.. rhythm and poetry🖋