हेय रहें हैं अपमानों में, पर अनिष्ट ना कभी कहे... समावेश हर नूतन कण का, सदा कीर्ति कोई ही रहें ! हो प्राचीन क्षमा कोई, गर प्रेम में हमको भी बतलाओ... हम अधीर यों ही रहते, क्यूँ अधीनस्थ ना अंत बने ।। आपूर्तिश्रृंखला प्रतिमानों की, जो अवमानित सदा रही .... गगन उपस्थित ही बस था , पर करूणा मेरी ना ही घटी ! प्रलय प्रचण्ड पुरूष पौरूष सा, वेग में जब भीतर उपजा... उजड़ी स्मृति सभी मगर, चैतन्य सी तुम जीवंत रही ।। जो पिसकर बीता है समय, वहीं घर्षण बन सोकर उठता है, चक्र में तुम घूर्णित तो रही ,हरित सुदर्शन रोता है।।। #Love प्रतिमान #NojotoHindi