बारिश की बूंदे मेरी उम्र पूछे बिना मेरे आंगन में आई । मेरा मन तो भिगो गई पर तन ना भिगो पाई। क्योंकि मेरे आंगन पर कई आंखों का पहरा है। संस्कारों की दहलीज का प्रभाव भी गहरा है। कितनी निर्लज है यह बारिश, इसे कहो मेरे आंगन में ना आया करे। जहां खुशियां करें छपाक छपाक , बस वही जाया करें । मेरा मन तर हो जाता है, गहरा जाते हैं ढेरों सवाल । इस प्रकृति को भी रखना चाहिए, मेरी उम्र का ख्याल। या तो ये नियम खोखले हैं या फिर यह कुदरत झूठी । जाने क्यों मेरी उम्र ने ही मुझसे मेरी खुशियां लूटी। 🖋️ रिम्पी लीखा