तौहीन ए जज़्बात की अब बात न छेड़ो बीत गई उस रात की अब बात न छेड़ो रिश्ता भी कारोबारी था जज़्बात भी बतील सतही ताल्लुकात की अब बात न छेड़ो हासिल न कुछ वो कर सका साथ छोड़कर दगा ए एहसासात की अब बात न छेड़ो तफरीह थी उसके लिये यूँ इश्क में फरेब मुख्तसर सी मुलाकात की अब बात न छेड़ो करता रहा मैं इश्क वो करता रहा मज़ाक उन तंज़ई हालात की अब बात न छेड़ो समर उस दिलफेब के धोखे भी थे हसीन फितरत ए खुराफात की अब बात न छेड़ो