मुठ्ठी बंद थी, और रेत निकलती रही, ज़ोर आजमाइश चलती रही, पर रेत रूक ना सकी, आख़िर मुठ्ठी खुली तो, सिर्फ़ रेत की यादें थी, जो हथेलियों पर सिमट गयी । रेत की तरह उड़ी मेरी ज़िन्दगी... #रेतकीतरह #collab #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #lovetopoetry #padhnelikhnewale #पढ़नेलिखनेवाले