समझ के जो ना समझे, उन्हें बेकार है समझाना फ़ालतू की बातों में, ना अपना वक़्त गँवाना! तेरे दीदार को तरसे, साँझ ढले छत पे आना बिछड़ कर तुमसे जाती है "जान" मेरी जाना। मुख़तलिफ़ थे कभी मुहब्बत से, अब गया वो ज़माना तुम संग हसीं हुई ज़िंदगी जले तो जले चाहे ज़माना! समझ के जो ना समझे, उन्हें बेकार है समझाना फ़ालतू की बातों में, ना अपना वक़्त गँवाना! तेरे दीदार को तरसे, साँझ ढले छत पे आना बिछड़ कर तुमसे जाती है "जान" मेरी जाना। मुख़तलिफ़ थे कभी मुहब्बत से, अब गया वो ज़माना तुमसे संग हसीं हुई ज़िंदगी जले तो जले चाहे ज़माना!