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यूं तो रोज बरसता था मेरे मन का सावन जब से गए पिया

यूं तो रोज बरसता था मेरे मन का सावन
जब से गए पिया परदेश सूना पड़ा है आंगन
कोयल तेरी कूक, हूक उठाएं मेरे अंतर्मन में।
मेरे मन की प्यास बढ़ाए सावन ये मनभावन।

स्वरचित

©Nimisha Goswami
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