खुद का साथ खुद से जब शिकायत थी, तो जग से कोई उम्मीद न थी, अब जब खुद का साथ पाया, जग से कोई उम्मीद नहीं। तब भी उनकी रजामंदी थी, आज भी उनकी आंखों में स्नेह है, कभी रूठे कभी बर्दाश्त कर लिया, उन सब ने जो मेरे साथ हैं। कई बार लड़कर, झेल कर खुद को, मना कर, घिस कर, हर एक रिश्ता निभाया है, अक्सर खुद को फिर भी भटकते पाया है। सब कुछ बस सोच का खेल है, यही समझ आया है, एक साथ ढूंढने की बजाय, साथ निभाकर मज़ा आया है, वह भले ही खुद से हो, या किसी और से।। #yqdidi #डायरी #खुदसेप्यार #सहीसोच