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मंज़िल से भटका जनसैलाब नज़र आता है, जहाँ उम्मीद थी

मंज़िल से भटका जनसैलाब नज़र आता है,
जहाँ उम्मीद थी उपजाऊ ज़मीं की,
वहाँ तेज़ाब, बस तेज़ाब नज़र आता है।
मुड़कर देखता हूँ आज शहीदों की आँखों में,
अधूरा एक कारवाँ बेताब नज़र आता है।

मंज़िल से भटका ....

देशभक्ति को नज़र,
एकता को दिमक़ सी लगी है,
शहीदों के नाम पर बनी धर्मों की गली है,
बस भीड़ बन गया है मेरे देश का सपूत,
अपनी ही किसी रंग की क़िताब नज़र आता है।

मंज़िल से भटका....

रविकुमार.... मंज़िल से भटका जनसैलाब नज़र आता है,
जहाँ उम्मीद थी उपजाऊ ज़मीं की,
वहाँ तेज़ाब, बस तेज़ाब नज़र आता है।
मुड़कर देखता हूँ आज शहीदों की आँखों में,
अधूरा एक कारवाँ बेताब नज़र आता है।
मंज़िल से भटका ....
देशभक्ति को नज़र,
एकता को दिमक़ सी लगी है,
मंज़िल से भटका जनसैलाब नज़र आता है,
जहाँ उम्मीद थी उपजाऊ ज़मीं की,
वहाँ तेज़ाब, बस तेज़ाब नज़र आता है।
मुड़कर देखता हूँ आज शहीदों की आँखों में,
अधूरा एक कारवाँ बेताब नज़र आता है।

मंज़िल से भटका ....

देशभक्ति को नज़र,
एकता को दिमक़ सी लगी है,
शहीदों के नाम पर बनी धर्मों की गली है,
बस भीड़ बन गया है मेरे देश का सपूत,
अपनी ही किसी रंग की क़िताब नज़र आता है।

मंज़िल से भटका....

रविकुमार.... मंज़िल से भटका जनसैलाब नज़र आता है,
जहाँ उम्मीद थी उपजाऊ ज़मीं की,
वहाँ तेज़ाब, बस तेज़ाब नज़र आता है।
मुड़कर देखता हूँ आज शहीदों की आँखों में,
अधूरा एक कारवाँ बेताब नज़र आता है।
मंज़िल से भटका ....
देशभक्ति को नज़र,
एकता को दिमक़ सी लगी है,