ध्यान ही चेतना का जागरण करता है। इसकी शुरूआत में ही व्यक्ति को शरीर से मुक्त हो जाना होता है। शवासन या कायोत्सर्ग की मुद्रा, भ्रस्त्रा,एकाग्रता का अभ्यास आदि इसमें सहायक क्रियाएं हैं। प्राणायाम दूसरा सोपान हैं। इसमें श्वास को लयबद्ध एवं मन्द करना होता है। जैसे-जैसे ध्यान गहन होता है, श्वास की गति मन्द होती जाती है। यह मन्द गति चमत्कारी साबित होती है। इसकी शरीर और मन को जोड़ने की शक्ति घट जाती है। मन में विचार चलते रहते हैं, वासनाएं भी जाग्रत रहती है, किन्तु शरीर पर प्रभावी नहीं हो पाती। तब संकल्पित मन विज्ञानमय कोष की ओर मुड़ता है। सुप्त चेतना से उसका