मेरे महबूब की दास्तां छोई सी है। कुछ ऐसी,- मैंने जैसा समझा वह ठीक वैसी है। अलसाई आधी जागी-आधी सोई! आधी कही आधी सुनी आरजू सी। हसरत में डूबी तो मोहब्बत से भरी! पास आना चाहे और दूर चली जाए। कुछ कुछ पाई कुछ खोई सी है। एहसास उसका झरने सा- ज़ज़्बात गिरते मचलते पानी से! मैं तलहटी में जमा एक पत्थर- वो गिर कर बिखरी- कुछ कुछ रोई सी है। मेरे महबूब की दास्तां छोई सी है। ♥️ Challenge-514 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।