मैं जेठ में झुलसती तप्त धरा तुम रेगिस्तान में बरसी पहली बारिश! पहली फुहार की बूँदें सौंधी सौंधी महकाती है वैसी तुम्हारी छुअन! तन मन भिगाती हुई बारिश! नई तृष्णाएँ जगाती है ये बारिश! कभी हँसाती है कभी रूलाती है! जीवन के कई रंग दिखाती है बारिश! कामनाओं की नई तितलियाँ उगाती है बारिश! मैं जेठ में झुलसती तप्त धरा तुम रेगिस्तान में बरसी पहली बारिश! पहली फुहार की बूँदें सौंधी सौंधी महकाती है वैसी तुम्हारी छुअन! तन मन भिगाती हुई बारिश! नई तृष्णाएँ जगाती है ये