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#KisanDiwas वसुधा-सुत °°°°°°°°°°°°°° हे धर

#KisanDiwas      
  वसुधा-सुत
°°°°°°°°°°°°°°
हे धरापुत्र! हे कृषक महान!
हे वसुधासुत! हे उपजों के तात!
तुम हो इस जग जननी धरा से और ये जग जननी धरा तुम से है।
अस्तित्व हमारा है कुछ भी नहीं, परिचय हमारा तुमसे है।
खलिहान की पावन माटी को तुम चंदन-सा मस्तक पर मलते हो।
ग्रिष्म की चिल्ल-चिल्लाती दुपहरी की लूँह और धूप में तपते हो।
शरद की अत्यंत शीतल वायु और शीत कोहरे को भी सहते हो।
तुम अपने रक्त और स्वेदजल से उपजों का सींचन करते हो।
पाषण पर भी अपने हल प्रहार से हरी उपज उगाने की क्षमता रखते हो।
कभी भी खलिहान खाली न रखते हो, भले ही स्वयं कर्ज की ज्वाला में जलते हो।
बैलों के संग सीता लेकर उनके गले की घंटी की ताल में सुर भरते हो।
तुम्हारी योग-साधना किसी तपस्वी-योगी से कम नहीं, इस भाँति धरा भक्ति में रमते हो।
तुम स्वयं भूखे पेट रहकर भी,विशाल इमारतों में रहने वालों की छुबधा हरते हो।
तुम अन्नदाता हो, भारत-भाग्य-विधाता हो।
वरना न होता आर्याव्रत कृषिय प्रधान देश, जिसके तुम अटल आधार-शीला हो।
निःसंदेह ये असंभव है कि "रेखा"तुम्हारे प्रत्येक संघर्षों एवं कष्टों की विस्तृत वर्णन कर पाये।
क्षमा कीजिएगा ए दाता मेरे! जो "हृदयमंजूला" तुम्हारी यथा-व्यथा तथा आत्मकथा न समझ पाये।
 जय हो तुम्हारी हे रत्नप्रभा सुत! जय हो तुम्हारी वसुंधरा के लाल।
जय हो तुम्हारी हे हलधर!
हे धरापुत्र! हे कृषक महान!

-तुम्हारी सुता "रेखा💕ह्रदयमंजूला" #कृषक महान   
 
  वसुधा-सुत
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हे धरापुत्र! हे कृषक महान!
हे वसुधासुत! हे उपजों के तात!
#KisanDiwas      
  वसुधा-सुत
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हे धरापुत्र! हे कृषक महान!
हे वसुधासुत! हे उपजों के तात!
तुम हो इस जग जननी धरा से और ये जग जननी धरा तुम से है।
अस्तित्व हमारा है कुछ भी नहीं, परिचय हमारा तुमसे है।
खलिहान की पावन माटी को तुम चंदन-सा मस्तक पर मलते हो।
ग्रिष्म की चिल्ल-चिल्लाती दुपहरी की लूँह और धूप में तपते हो।
शरद की अत्यंत शीतल वायु और शीत कोहरे को भी सहते हो।
तुम अपने रक्त और स्वेदजल से उपजों का सींचन करते हो।
पाषण पर भी अपने हल प्रहार से हरी उपज उगाने की क्षमता रखते हो।
कभी भी खलिहान खाली न रखते हो, भले ही स्वयं कर्ज की ज्वाला में जलते हो।
बैलों के संग सीता लेकर उनके गले की घंटी की ताल में सुर भरते हो।
तुम्हारी योग-साधना किसी तपस्वी-योगी से कम नहीं, इस भाँति धरा भक्ति में रमते हो।
तुम स्वयं भूखे पेट रहकर भी,विशाल इमारतों में रहने वालों की छुबधा हरते हो।
तुम अन्नदाता हो, भारत-भाग्य-विधाता हो।
वरना न होता आर्याव्रत कृषिय प्रधान देश, जिसके तुम अटल आधार-शीला हो।
निःसंदेह ये असंभव है कि "रेखा"तुम्हारे प्रत्येक संघर्षों एवं कष्टों की विस्तृत वर्णन कर पाये।
क्षमा कीजिएगा ए दाता मेरे! जो "हृदयमंजूला" तुम्हारी यथा-व्यथा तथा आत्मकथा न समझ पाये।
 जय हो तुम्हारी हे रत्नप्रभा सुत! जय हो तुम्हारी वसुंधरा के लाल।
जय हो तुम्हारी हे हलधर!
हे धरापुत्र! हे कृषक महान!

-तुम्हारी सुता "रेखा💕ह्रदयमंजूला" #कृषक महान   
 
  वसुधा-सुत
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हे धरापुत्र! हे कृषक महान!
हे वसुधासुत! हे उपजों के तात!