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वैशाख की पहली बारिश, यूँ लेकर आये तुम। गर्म कुंड

वैशाख की पहली बारिश,
 यूँ लेकर आये तुम।
गर्म कुंड के बीच निकलती,
कोई शीतल धारा लाये तुम।

आज प्रकृति स्वागत को तत्पर,
देखो कैसे व्याकुल है।
आम्रमंजरी ने द्वार सजाया,
कोकिल ने किया स्नेहगान,
मयूर नृत्य की आभा बतलाऊँ,
या अपने ह्रदय का राग सुनाऊँ।
वर्षा की बूंदें जब छूती तन को,
बयार सखी बन तभी छेड़ती मन को।
मेघों का गर्जन भी आज कर्णप्रिय है,
पावस और प्रेम का ये कैसा सम्बन्ध है।

राग प्रेम अब धरा प्रेममय,
चित्त मेरा अब सर्वस्व प्रेममय।

- प्रज्ञास्मि

©Pragya Ratan Shrivastava
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